बिहार में करवा चौथ कैसे मनाया जाता है

करवा चौथ भारत के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, खासकर विवाहित महिलाओं के लिए। यह त्योहार पति-पत्नी के अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। पूरे भारत में इसे अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, और बिहार में भी करवा चौथ का अपना विशेष महत्व और रीति-रिवाज हैं।
तो, आइए जानें कि बिहार में करवा चौथ कैसे मनाया जाता है!
बिहार में करवा चौथ की तैयारी
करवा चौथ की तैयारी कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। महिलाएं इस दिन के लिए नए कपड़े, गहने और श्रृंगार का सामान खरीदती हैं। घरों को साफ किया जाता है और सजाया जाता है। करवा चौथ के लिए विशेष पूजा सामग्री भी खरीदी जाती है, जिसमें करवा (मिट्टी का बर्तन), चलनी, दीये और मिठाई शामिल हैं।
सरगी: व्रत की शुरुआत
करवा चौथ के दिन की शुरुआत सरगी से होती है। सरगी एक विशेष भोजन है जो व्रत रखने वाली महिलाएं सूर्योदय से पहले खाती हैं। इसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे और कुछ पका हुआ भोजन शामिल होता है। सरगी सास या परिवार की कोई बड़ी महिला बनाती है और व्रत रखने वाली महिलाओं को देती है। सरगी खाने के बाद, महिलाएं पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं। इसका मतलब है कि वे पानी भी नहीं पीती हैं।
करवा चौथ व्रत का दिन
पूरे दिन महिलाएं बिना कुछ खाए-पिए व्रत रखती हैं। वे भगवान शिव, पार्वती और करवा माता की पूजा करती हैं। करवा माता की कथा सुनी जाती है, जो एक पतिव्रता स्त्री की कहानी है जिसने अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी।
करवा चौथ की पूजा
शाम को करवा चौथ की मुख्य पूजा होती है। महिलाएं एक साथ मिलकर पूजा करती हैं। वे एक थाली में दीया, रोली, चावल, मिठाई और फल रखती हैं। करवा (मिट्टी का बर्तन) को भी पूजा में रखा जाता है। महिलाएं करवा माता की कथा सुनती हैं और फिर चांद को देखती हैं।
चांद देखने का महत्व
चांद देखने के बाद, महिलाएं चलनी से चांद को और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद, पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर और मिठाई खिलाकर व्रत तोड़ता है। यह पल बहुत ही खास होता है और पति-पत्नी के बीच प्यार और बंधन को मजबूत करता है।
बिहार में करवा चौथ के कुछ खास रीति-रिवाज
बिहार में करवा चौथ के कुछ खास रीति-रिवाज हैं जो इसे और भी खास बनाते हैं:
- कोहबर: कुछ क्षेत्रों में, महिलाएं कोहबर बनाती हैं, जो दीवारों पर बनाई जाने वाली पारंपरिक कलाकृति है। यह कलाकृति प्रेम, विवाह और परिवार का प्रतीक है।
- पीठा: करवा चौथ के लिए विशेष प्रकार के पीठा (चावल के आटे से बनी मिठाई) बनाए जाते हैं।
- दान: व्रत तोड़ने के बाद, महिलाएं गरीबों और जरूरतमंदों को दान करती हैं।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच प्यार, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। यह त्योहार महिलाओं को अपने पति के प्रति अपनी श्रद्धा और स्नेह व्यक्त करने का अवसर देता है। करवा चौथ परिवार और समुदाय को भी एक साथ लाता है, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं।
कुछ जरूरी बातें
- गर्भवती महिलाएं और बीमार महिलाएं: गर्भवती महिलाओं और बीमार महिलाओं को व्रत रखने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
- पानी की कमी: निर्जल व्रत रखने से शरीर में पानी की कमी हो सकती है। इसलिए, व्रत तोड़ने के बाद खूब पानी पिएं।
- सही आहार: सरगी में पौष्टिक भोजन शामिल करें ताकि आपको पूरे दिन ऊर्जा मिले।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
करवा चौथ का व्रत क्यों रखा जाता है?
करवा चौथ का व्रत पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है।
सरगी कब खानी चाहिए?
सरगी सूर्योदय से पहले खानी चाहिए।
करवा चौथ की पूजा में क्या-क्या सामग्री चाहिए?
करवा चौथ की पूजा में करवा (मिट्टी का बर्तन), चलनी, दीये, रोली, चावल, मिठाई और फल चाहिए होते हैं।
चांद देखने के बाद क्या करना चाहिए?
चांद देखने के बाद, चलनी से चांद को और फिर अपने पति को देखना चाहिए। इसके बाद, पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर और मिठाई खिलाकर व्रत तोड़ता है।
करवा चौथ एक खूबसूरत त्योहार है जो प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। बिहार में इसे पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करता है और परिवार में खुशियां लाता है।