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ऋषि पंचमी का व्रत कैसे किया जाता है

ऋषि पंचमी एक महत्वपूर्ण हिन्दू व्रत है जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत सप्तऋषियों – कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ – के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए किया जाता है। महिलाएं इस दिन विशेष रूप से व्रत रखती हैं और सप्तऋषियों की पूजा करती हैं। इस व्रत का उद्देश्य पिछले जन्मों या वर्तमान जीवन में जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति पाना और अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाना है। तो चलिए, जानते हैं कि ऋषि पंचमी का व्रत कैसे किया जाता है।

ऋषि पंचमी का व्रत कैसे किया जाता है

ऋषि पंचमी व्रत की तैयारी

ऋषि पंचमी का व्रत शुरू करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण तैयारियां करनी होती हैं। ये तैयारियां व्रत को सही तरीके से करने और उसका फल प्राप्त करने में मदद करती हैं:

  • व्रत का संकल्प: सबसे पहले, ऋषि पंचमी के दिन व्रत रखने का संकल्प लें। मन में यह दृढ़ निश्चय करें कि आप पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ व्रत का पालन करेंगी।
  • पूजा सामग्री: व्रत के लिए आवश्यक पूजा सामग्री जैसे कि सप्तऋषियों की मूर्तियां या चित्र, फूल, फल, धूप, दीप, अक्षत (चावल), चंदन, कुमकुम, रोली, दही, गंगाजल और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण) तैयार कर लें।
  • व्रत का स्थान: घर में एक स्वच्छ और शांत स्थान चुनें जहाँ आप सप्तऋषियों की पूजा कर सकें। उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और वहाँ पूजा सामग्री स्थापित करें।
  • स्वच्छता: ऋषि पंचमी के दिन शारीरिक और मानसिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • भोजन: इस व्रत में बिना हल चलाये हुए अनाज और कंदमूल का भोजन किया जाता है। इसलिए कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, फल और सब्जियां तैयार रखें।

ऋषि पंचमी व्रत की विधि

ऋषि पंचमी का व्रत विधिपूर्वक करने से ही इसका पूर्ण फल प्राप्त होता है। यहाँ हम आपको ऋषि पंचमी व्रत की पूरी विधि बता रहे हैं:

  1. प्रातः काल स्नान: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना शुभ माना जाता है। स्नान करते समय सप्तऋषियों का स्मरण करें।
  2. व्रत का संकल्प: स्नान के बाद, व्रत का संकल्प लें। संकल्प लेते समय हाथ में जल, अक्षत और फूल लेकर मंत्रों का उच्चारण करें और सप्तऋषियों से व्रत को निर्विघ्न रूप से पूरा करने की प्रार्थना करें।
  3. सप्तऋषियों की पूजा: पूजा स्थान पर सप्तऋषियों की मूर्तियां या चित्र स्थापित करें। उन्हें फूल, फल, धूप, दीप, अक्षत, चंदन और कुमकुम से सजाएं।
  4. पंचामृत से अभिषेक: सप्तऋषियों की मूर्तियों को पंचामृत से अभिषेक करें। अभिषेक करते समय सप्तऋषि मंत्रों का जाप करें।
  5. मंत्र जाप: सप्तऋषि मंत्रों का जाप करें। आप निम्न मंत्र का जाप कर सकते हैं:

    “कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
    जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
    दहन्तु पापं सर्वं गृह्णन्त्वर्घ्यं नमो नमः।”

  6. कथा श्रवण: ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। यह कथा व्रत के महत्व और महिमा को बताती है।
  7. आरती: सप्तऋषियों की आरती करें। आरती के बाद उन्हें प्रणाम करें और अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करें।
  8. दान: अपनी क्षमता के अनुसार दान करें। आप गरीबों को भोजन, वस्त्र या धन दान कर सकते हैं।
  9. भोजन: ऋषि पंचमी के दिन बिना हल चलाये हुए अनाज और कंदमूल का भोजन करें। इस दिन नमक का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  10. व्रत का पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें। पारण करते समय सबसे पहले सप्तऋषियों को भोग लगाएं और फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।

ऋषि पंचमी व्रत के नियम

ऋषि पंचमी व्रत का पालन करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है:

  • ब्रह्मचर्य: व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • क्रोध और झूठ से बचें: क्रोध और झूठ से बचें और शांत और संयमित रहें।
  • निंदा न करें: किसी की निंदा न करें और सभी के प्रति सम्मान का भाव रखें।
  • शारीरिक संबंध: व्रत के दिन शारीरिक संबंध बनाने से बचें।
  • नकारात्मक विचार: नकारात्मक विचारों से दूर रहें और सकारात्मक सोच रखें।

ऋषि पंचमी व्रत का महत्व

ऋषि पंचमी का व्रत हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत को करने से कई लाभ होते हैं:

  • पापों से मुक्ति: ऋषि पंचमी का व्रत करने से पिछले जन्मों या वर्तमान जीवन में जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है।
  • सुख-शांति: यह व्रत जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
  • सप्तऋषियों का आशीर्वाद: सप्तऋषियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन में सफलता और खुशहाली आती है।
  • मानसिक शांति: व्रत करने से मन शांत होता है और तनाव कम होता है।
  • आत्म-अनुशासन: यह व्रत आत्म-अनुशासन और संयम सिखाता है।

ऋषि पंचमी व्रत कथा

प्राचीन काल में विदर्भ देश में एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी सुशीला बहुत ही पतिव्रता थी। एक दिन सुशीला रजस्वला हो गई और उसने अनजाने में बर्तन छू लिए। अगले जन्म में, वह कुतिया बन गई। ब्राह्मण ने अपने तपोबल से यह जान लिया। उसने ऋषि पंचमी का व्रत करने को कहा। सुशीला ने व्रत किया और अगले जन्म में वह फिर से ब्राह्मण पत्नी बनी। तभी से ऋषि पंचमी का व्रत प्रचलित है।

ऋषि पंचमी व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं

ऋषि पंचमी व्रत में खाने-पीने का विशेष ध्यान रखना होता है। इस व्रत में बिना हल चलाये हुए अनाज और कंदमूल का भोजन किया जाता है।

  • क्या खाएं: कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, फल (जैसे केला, सेब, अनार), सब्जियां (जैसे आलू, शकरकंद, लौकी, कद्दू), दही, दूध, पंचामृत।
  • क्या न खाएं: चावल, गेहूं, दाल, नमक, प्याज, लहसुन, मांसाहारी भोजन, मदिरा।

निष्कर्ष

ऋषि पंचमी का व्रत एक पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है जो सप्तऋषियों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इसलिए, हर महिला को ऋषि पंचमी का व्रत अवश्य करना चाहिए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

ऋषि पंचमी क्यों मनाई जाती है?

ऋषि पंचमी सप्तऋषियों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाई जाती है। यह व्रत पिछले जन्मों या वर्तमान जीवन में जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति पाने के लिए भी किया जाता है।

ऋषि पंचमी के दिन क्या करना चाहिए?

ऋषि पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए, व्रत का संकल्प लेना चाहिए, सप्तऋषियों की पूजा करनी चाहिए, मंत्रों का जाप करना चाहिए, कथा सुननी चाहिए, दान करना चाहिए और बिना हल चलाये हुए अनाज और कंदमूल का भोजन करना चाहिए।

ऋषि पंचमी व्रत में क्या खाना चाहिए?

ऋषि पंचमी व्रत में कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, फल (जैसे केला, सेब, अनार), सब्जियां (जैसे आलू, शकरकंद, लौकी, कद्दू), दही, दूध और पंचामृत खाना चाहिए।

ऋषि पंचमी व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए?

ऋषि पंचमी व्रत में चावल, गेहूं, दाल, नमक, प्याज, लहसुन, मांसाहारी भोजन और मदिरा नहीं खाना चाहिए।

ऋषि पंचमी का व्रत कैसे तोड़ा जाता है?

ऋषि पंचमी का व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद तोड़ा जाता है। व्रत तोड़ने से पहले सप्तऋषियों को भोग लगाएं और फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।